एक अध्ययन से इस बात का पता चला है कि टोडों को भूकंप का पता पहले ही चल जाता है.
इसका पता लगा है पिछले साल इटली के लाक़िला शहर में आए भूकंप के समय जब सारे टोड भूकंप से तीन दिन पहले ही पलायन कर गए.
और ये तब हुआ जबकि भूकंप का अभिकेंद्र उनके वासस्थल से 74 किलोमीटर दूर था.
वैसे जर्नल ऑफ़ ज़ूलॉजी में छपे लेख में कहा गया है कि टोडों को कैसे पहले से ही भूकंप का पता लग पाया, ये अभी स्पष्ट नहीं है.
हालाँकि पशु-पक्षियों के स्वभाव में भूकंप के आने से पहले हुए बदलावों का अध्ययन एक कठिन काम है क्योंकि भूकंप किसी निश्चित समय पर नहीं आते.
पालतू पशु-पक्षियों पर भूकंप के प्रभाव के बारे में तो अध्ययन हो पाया है लेकिन जंगली जीवों में इस तरह का अध्ययन मुश्किल काम है.
अभी तक ये देखा गया है कि मछलियाँ, चूहे, साँप आदि भूकंप से ऐन पहले तो दूसरी तरह का बर्ताव करने लगते हैं, मगर ये बदलाव भूकंप के कई दिन पहले नहीं होता बल्कि भूकंप से कुछ ही देर पहले होता रहा है.
अध्ययन और संयोग
ब्रिटेन के ओपेन युनिवर्सिटी की एक जीव वैज्ञानिक डॉक्टर रेचेल ग्रैंट इटली में टोडों के बारे में एक अध्ययन कर रही थीं और वे लगभग रोज़ाना उनपर निगाह रख रही थीं जब अचानक वहाँ बड़ा भूकंप आ गया.
छह अप्रैल 2009 को आए इस भूकंप की तीव्रता 6.3 थी और उससे सबसे अधिक प्रभावित इटली की राजधानी रोम से 95 किलोमीटर दूर स्थित लाक़िला शहर हुआ.
हमारे अध्ययन से पता लगता है कि टोड भूकंप के पहले के भौगोलिक परिवर्तनों को महसूस कर सकते हैं जैसे कि गैस और आवेशित कणों का निकलना और वे इन्हें चेतावनी की तरह इस्तेमाल करते हैं
डॉक्टर ग्रैंट ने भूकंप के पहले, भूकंप के दौरान और भूकंप के बाद कुल 29 दिनों का अध्ययन किया.
डॉक्टर ग्रैंट अपना अध्ययन एक झील के पास कर रही थीं जहाँ टोड प्रजनन के लिए जुटते हैं.
उन्होंने पाया कि भूकंप से पाँच दिन पहले नर टोडों की संख्या लगभग ग़ायब ही हो गई जो कि बहुत ही असामान्य बात है क्योंकि टोड मादाओं के अंडे देने तक वहाँ रहा करते हैं.
भूकंप से तीन दिन पहले तो वहाँ से सारे के सारे टोड पलायन कर गए.
ये भी देखा गया कि भूकंप के छह दिन पहले भी टोडों ने अंडे दिए और छह दिन बाद भी लेकिन पहला झटका उठने से लेकर अंतिम झटका आने तक की भूकंप की अवधि में एक भी अंडा नहीं दिया गया.
डॉक्टर ग्रांट का कहना है कि शायद उस दौरान टोड ऊँचे स्थानों पर भाग गए थे ताकि चट्टानों आदि के गिरने से या बाढ़ आने की स्थिति में वे बच सकें.
अभी ये तो पता नहीं है कि टोडों को कैसे भूकंप का आभासा हुआ लेकिन अध्ययन से इतना अवश्य प्रकट होता है कि टोड कुछ-ना-कुछ महसूस करते हैं.
डॉक्टर ग्रैंट कहती हैं,"हमारे अध्ययन से पता लगता है कि टोड भूकंप के पहले के भौगोलिक परिवर्तनों को महसूस कर सकते हैं जैसे कि गैस और आवेशित कणों का निकलना और वे इन्हें चेतावनी की तरह इस्तेमाल करते हैं."
चींटियाँ अप्रभावित
वैसे इससे पहले जीव-जंतुओं के बारे में एक और महत्वपूर्ण अध्ययन भी संयोग से हुआ था और उसमें एक दूसरी ही तरह की बात सामने आई थी.
अमरीका के कैलिफ़ोर्निया प्रदेश के मोजावे रेगिस्तान में 28 जून 1992 को एक अत्यंत शक्तिशाली भूकंप आया.
तब वहाँ वैज्ञानिकों का एक दल रेगिस्तानी चींटियों के बारे में अध्ययन कर रहा था.
मगर उन्होंने ये देखा कि 7.4 की तीव्रता वाले भूकंप के बावजूद चींटियों के सामान्य क्रियाकलाप पर कोई असर नहीं पडा.
A blog for BIOLOGY students by : Susheel Dwivedi PGT Biology Kendriya Vidyalaya Secter J Aliganj Lucknow U P
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