जीनोम से भी जटिल है जीवन
बड़बोला भगवानः क्रेग वेंटर
दस साल पहले अमेरिकी वैज्ञानिक क्रेग वेन्टर ने बड़े गर्व से घोषणा की थी कि उनकी प्रयोगशाला सेलेरा जीनोमिक्स में मानवीय जीनोम के अधिकांश जीनों को पढ़ लिया गया है. लेकिन जीवन की जटिलता को सामने आने में अभी और वक्त लगेगा.
क्रेग वेन्टर को गर्व इस बात का भी था कि सरकारी सहायताओं से चल रहा अंतरराष्ट्रीय ह्यूमन जीनोम प्रॉजेक्ट इस काम में पिछड़ गया था. उनकी घोषणा से दोनों के बीच प्रतियोगिता और भी तेज़ हो गई. लेकिन जून 2000 में दोनों ने मिल कर मानवीय जीनोम का एक आरंभिक नक्शा पेश किया. उस समय वेंटर ने कहा, "मैंने दूसरे लोगों की टीका टिप्णियों की कभी परवाह नहीं की. मैं मेहनत से काम करता हूं. अधिक से अधिक जानकारियां जुटाता हूं और अपनी राय आप बनाता हूं.
इस बीच अनुवंशिक जीवविज्ञान में बहुत प्रगति हुई है. मानवीय जीनभंडार यानी जीनोम को विकोडित कर लेने से सारी बीमारियों पर विजय पा लेने का सब्ज़बाग हालांकि अब भी टेढ़ी खीर है, तब भी यह तो मानना ही पड़ेगा कि मनमौज़ी क्रेग वेंटर के भड़काऊ कामों ने इस क्षेत्र में एक क्रांति-सी ला दी है. वह कहते हैं, "ऐसे भी लोग होते हैं, जो हाई स्कूल से आते ही अपना विचार बना चुके होते हैं. वे जानते हैं कि उन्हें क्या करना है और वे अपना विचार कभी बदलते नहीं. मैं अब भी जानने में लगा हूं कि मैं अभी और क्या कुछ कर सकता हूं."
बड़बोली बातें
वेंटर का बड़बोलापन कड़वा भले ही लगे, लेकिन वह अपना काम कर जाता है. 1998 में उन्होंने मानवीय जीनों की कोड भाषा को पढ़ कर उनका नक्शा बनाने के लिए सेलेरा जीनोमिक्स की स्थापना की. हालांकि इसी काम के लिए ह्यूमन जीनोम प्रॉजेक्ट नाम से एक अंतरराष्ट्रीय परियोजना 1990 से ही चल रही थी. वेंटर ने अपनी निजी प्रयोगशाला में यह काम सरकारी पैसों से चल रही अंतरराष्ट्रीय परियोजना से पहले ही लगभग पूरा कर लिया.
अंतरराष्ट्रीय परियोजना में काम कर रहे वैज्ञानिकों की सुस्ती पर कटाक्ष करते हुए वेंटर कहते हैं, "मैं भी यदि उनकी तरह समझौतावादी और सुस्त रहा होता, तो मानवीय जीनोम आज तक पढ़ा नहीं जा सका होता."
भगवान बनने का दंभ
63 वर्ष के वेंटर कहीं न कहीं भगवान बनने और दुनिया को कुछ देकर जाने के उत्कट अभिलाषी लगते हैं. तभी तो वह कहते हैं, "हो सकता है कि मेरी बात साइंस फ़िक्शन जैसी लगे, लेकिन योजना और आनुवंशिक चयन एक दिन डार्विन के विकासवाद का स्थान ले लेंगे."
वेंटर अपने विज्ञान के लिए नैतिकता की कोई सीमारेखा स्वीकार नहीं करते. उनकी अगली ज़िद है मनुष्य का बनाया कृत्रिम जीवन पैदा करना. 2007 में उन्होंने विज्ञान जगत के सामने रखा अपना स्वनियोजित और स्वनिर्मित पहला कृत्रिम बैक्टीरिया. कहते हैं, कृत्रिम जीवधारियों की रचना के द्वारा वे दुनिया के सामने खड़ी ऊर्जा समस्या को हल करने और जलवायु परिवर्तन को रोकने में सहायक बन सकते हैं. वेंटर के मुताबिक, "डिज़ाइन किए हुए, कृत्रिम आणविक जीवों के द्वारा हम बड़ी-बड़ी सामाजिक समस्याओं को हल कर सकते हैं. वैकल्पिक ऊर्जा पैदा कर सकते हैं."
क्रेग वेंटर शायद ही कभी हंसते हुए दिखाई पड़ते हैं. उन की प्रयोगशाला खूब कमाई कर रही है. अन्य वैज्ञानिक या तो उन्हें कोसते-धिक्कारते हैं, या मन ही मन पूजते हैं. उनकी खिल्ली अब कोई नहीं उड़ाता..
By.-Susheel Dwivedi
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A blog for BIOLOGY students by : Susheel Dwivedi PGT Biology Kendriya Vidyalaya Secter J Aliganj Lucknow U P
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