भारत में स्पर्म बैंकिंग बूम पर है। विदेशों से भी बड़ी संख्या में लोग यहां आ रहे हैं। कुछ वर्ष पहले हालात अलग थे। एक समय दिल्ली का एक प्रसिद्ध अस्पताल शुक्राणु (स्पर्म) डोनेशन के विज्ञापन को एक समाचार पत्र में प्रकाशित करवाना चाहता था, जिसे प्रकाशित करने से मना कर दिया गया था। इसके पीछे समाचार पत्र का तर्क था कि विज्ञापन असामाजिक है और इसमें अप्रिय सामग्री है। मगर, अब स्पर्म डोनेशन के लिए किसी विज्ञापन देने की जरूरत नहीं है क्योंकि यहां का फोन हमेशा बजता ही रहता है। शादीशुदा लोगों के साथ ही अकेले रहने वाले पुरुष स्पर्म देने में काफी दिलचस्पी ले रहे हैं। स्पर्म बैंकिग भारत में काफी तेजी से उभरता हुआ व्यापार है। इससे भी ज्यादा नाटकीय बात यह है कि एजूकेटेड स्पर्म की मांग बढ़ना।
करीब एक दशक पहले स्पर्म बैंक में जाने वाले सभी संतानहीन जोड़े स्पर्म देने वाले की उम्र और उसकी धार्मिक पृष्ठभूमि के बारे में ही जानना चाहते थे। अब लोग रूप-रंग, उम्र, लंबाई, वजन, बालांे और आंखों के रंग, धर्म और कई बार तो शौक तक के बारे में जानना चाहते हैं। अपोलो हॉस्पिटल में आईवीएफ लैब की प्रमुख डॉ. सोहानी वर्मा बताती हैं कि कुछ जोड़े चाहते हैं कि एक बार स्पर्म डोनर से फोन पर बात कराई जाए या उसकी फोटो दिखा दी जाए। डॉ. वर्मा कहती हैं कि हम उनकी आशंकाओं को दूर करने के लिए उनकी काउंसलिंग करते हैं। वहीं, इस व्यापार से जुड़े विशेषज्ञ कहते हैं कि स्पर्म बैंक की बढ़ती लोकप्रियता का कारण है पुरुषों में बढ़ती नपुंसकता और स्पर्म फ्रीजिंग की मांग का तेजी से बढ़ना है। लोग अधिक आयु में पिता बनना चाहते हैं। उनका मानना है कि जब तक वे नौकरी या व्यवसाय में बिजी हैं, तब तक वे बच्चों की योजना न बनाए। उनकी संख्या स्वैच्छिक स्पर्म दान देने वालों की संख्या से अधिक है।
40 फीसदी पुरुषों में नहीं है संतानोत्पत्ति की क्षमता
इंडियन सोसाइटी ऑफ अस्स्टिड रीप्रोडक्शन (आईएसएआर) के उपाध्यक्ष डॉ. ऋषिकेष पाई के अनुसार, भारत में करीब तीन करोड़ लोग संतान पैदा करने में अक्षम हैं। ऐसे जोड़ों में 40 फीसदी से अधिक के लिए पुरुष हैं। पुरुषों में प्रजनन क्षमता की कमी कई वजहों से हो सकती है। इसमें शुक्राणुओं की संख्या में कमी, शुक्राणुओं का न होना या अशुक्राणुता, शुक्राणुओं की विकृति या कम शुक्राणुओं की गतिशीलता जैसे घटक शामिल हैं। शुक्राणुहीनता के लिए भारत में उपलब्ध एक इलाज आर्टिफिशिएल इनसेमिनेशन विद डोनर स्पर्म (एड) है। इससे करीब पांच प्रतिशत जोड़े लाभांवित होते हैं। इस बात के सटीक आंकड़े नहीं हैं कि भारत में पिछले एक दशक में पुरुषों की प्रजनन क्षमता में कमी के मामले बढ़े हैं।
लगभग सभी विशेषज्ञों का मानना है कि कमी के मामलों में तेजी से वृद्धि हुई है। डॉ. सोहानी कहती हैं कि वह रोजाना करीब १क्क् संतानहीन दंपती से मिलती हैं। उनमें से करीब 20प्रतिशत गंभीर और ५क् प्रतिशत आंशिक बांझपन के शिकार होते हैं। भारत में १९९क् में पहला स्पर्म बैंक शुरू करने वाले डॉ. अनिरुद्ध मालपानी के अनुसार, 20 से 45 की आयु के लोगों में आम समस्या हृदय रोग की नहीं बल्कि बांझपन की है। वह कहते हैं कि बदलती जीवनशैली और प्राकृतिक घटकों की कमी ने लोगों की जिंदगी में निश्चित रूप से प्रभाव डाला है। यही वजह है कि बांझपन के मामले बढ़ रहे हैं।
बैकअप इंश्योरेंस पॉलिसी
बढ़ती उम्र के साथ बांझपन हो सकता है। ऐसे संकट में एक ही उम्मीद की किरण है कि अधिक से अधिक लोग इस बारे में जागरूक हों। जो अपना करियर बनाने में व्यस्त हैं या फिर वे जो सेना, मर्चेट नेवी जैसी घर से दूर रहकर नौकरी करते हैं, वे बैकअप इंश्योरेंस पॉलिसी के तहत अपने स्पर्म को फ्रीज करवा रहे हैं। इसमें 3,200 रुपए से 15 हजार रुपए सालाना खर्च आता है। डॉ. केदार कहते हैं कि कभी-कभार हमें विदेशों में काम कर रहे लोग अपने सीमन कोरियर से भेजने का आग्रह करते हैं।
सही-गलत से बढ़ी उलझन
इसमें दो राय नहीं है कि किसी भी देश में अनाम दाता नीति के होने से स्पर्म की आपूर्ति अधिक होती है। दानदाता के नाम को गोपनीय रखने के कानून को हटा लेने के बाद ब्रिटेन में २क्क्८ में २८४ लोगों ने स्पर्म डोनेट किए। वहीं वर्ष 1996 में 419 लोगों ने स्पर्म डोनेट किए थे। ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि क्या दूसरे के स्पर्म से पैदा हुए बच्चे को उसके जेनेरिक या बायोलॉजिकल पिता के बारे में बताया जाना चाहिए। इसका पक्ष लेना वाकई कठिन है। डॉ. केदार कहते हैं कि जब हम किसी ऐसे जोड़े से मिलते हैं, जिसका बच्चा किसी दूसरे के स्पर्म से हुआ हो, लेकिन उसका पिता उससे बहुत प्यार करता हो तो ऐसे बच्चे के लिए यह जानना बिल्कुल जरूरी नहीं है कि उसका जेनेरिक पैरेंट कौन था? वहीं एक पक्ष यह मानता है कि बच्चे को उसके वास्तविक पिता के बारे में जानकारी दी जानी चाहिए।
अकेली महिला भी जा सकती है
श्चिमी देशों में स्पर्म बैंक की सेवाएं लेने में अकेली महिलाओं का प्रतिशत काफी अधिक है। भारत में भी ऐसा कोई कानून नहीं है जो अकेली महिला को स्पर्म बैंक की सेवाएं लेने से रोकता हो। आईसीएमआर के अनुसार, एड की मदद से अकेली महिला द्वारा जन्म दिए गए बच्चे को वैध माना जाएगा। हालांकि भारत में आमतौर पर शादीशुदा महिलाएं ही एड को अपना रही हैं। वह भी पति की लिखित अनुमति के बाद। ऐसा माना जाता है कि माता-पिता वाला परिवार, एकल परिवार की अपेक्षा बच्चे के लिए हमेशा ही बेहतर होगा। स्पर्म बैंक संचालकों का कहना है कि स्पर्म डोनेशन के जरिए गर्भधारण करने की इच्छुक अकेली महिलाओं की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है।
विदेशी भी आते हैं भारत
भारत में स्पर्म की मांग और आपूर्ति में भारी अंतर होने के बावजूद भारत की स्थिति अन्य देशों की तुलना में बेहतर है। ब्रिटेन के स्पर्म बैंक शुक्राणु दाताओं की असाधारण कमी का सामना कर रहे हैं। क्रायोस इंटरनेशनल के एमडी दिलीप पाटील कहते हैं कि हमें मीडिया का, विशेष रूप से इंटरनेट का धन्यवाद देना चाहिए। इसने लोगों में शुक्राणु दान करने के लिए जागरुकता पैदा की है। इस संख्या को अधिक बनाए रखने और लोगों को अधिक जागरूक करने के लिए हमें मीडिया की जरूरत होगी। विदेशी, स्पर्म खरीदने के लिए इसलिए भी भारत आते हैं क्योंकि यहां स्पर्म दान से पैदा हुए बच्चे को स्पर्म दाता का नाम बताना गैर कानूनी है। ब्रिटेन में स्थिति अलग है। वहां सरकार ने अंडाणु और शुक्राणु डोनर के नाम को गोपनीय रखने का प्रावधान पांच साल पहले ही हटा लिया था। नए नियमों के अनुसार, स्पर्म डोनेशन से पैदा होने वाला कोई भी 18 वर्ष से अधिक की आयु का होने के बाद शुक्राणु दाता के बारे में पूरी जानकारी पाने का अधिकार रखता है। स्पर्म बैंकों में लंबी प्रतीक्षा सूची होने के कारण प्रजनन उपचार के लिए ब्रिटेन के नागरिक चेक गणराज्य और स्पेन की तरफ रुख कर रहे हैं। भारत में स्पर्म की आसान उपलब्धता होने के कारण दक्षिण एशिया और यूरोप के लोग अधिक आ रहे हैं।
A blog for BIOLOGY students by : Susheel Dwivedi PGT Biology Kendriya Vidyalaya Secter J Aliganj Lucknow U P
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