Thursday, December 6, 2012

क्षय रोग (TUBERCULOSIS)





दशकों पहले क्षय रोग टी.बी को कभी नष्ट न होने वाला रोग समझा जाता था। क्षय राग से स्त्री-पुरुष बहुत भयभीत रहते थे। घर में किसी को क्षय रोग हो जाने पर उसे अलग कमरे में रखा जाता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। क्षय रोग को सरलता से नष्ट कर दिया जाता है।

उत्पत्तिः

शारीरिक रूप से निर्बल स्त्री-पुरुष पौष्टिक भोजन के अभाव में क्षय रोग से पीड़ित होते है। शारीरिक निर्बलता में जब अधिक शारीरिक व मानसिक श्रम किया जाता है। तो क्षय रोग उसे घेर लेता है। क्षय रोग की उत्पत्ति ट्यूबरक्लोसिस जीवाणुओं के शरीर में पहचने के काण होती है। दूषित भोजन और दूषित जल से इस रोग के जीवाणु स्वस्थ स्त्री-पुरुष तक पहुंच जाते है। किसी रोगी स्त्री-पुरुष से बातें करने से भी जीवाणु वायु में उड़कर दूसरे को रोगी बना देते है। रोगी पुरुष के साथ खाने-पीने से भी इस रोग का संक्रमण हो सकता है।



गंदी बस्तियों में, अंधेरे कमरों में दुषित वायु के वातरवरण में रहने से भी क्षय रोग की उत्पत्ति होती है। अधिक बच्चों को जन्म देने वाली स्त्रियां कुपोषण के कारण क्षय रोग की शिकार होती है। सहवास में अधिक संलग्न रहने वाले व्यक्ति भी क्षय रोग से पीड़ित होते है।

लक्षण
क्षय रोग के जीवाणुओं के संक्रमण से फुप्फुसों (फेफड़ों) में जख्म बनते है। रोगी को खांसी होती है और फिर खांसी के साथ कफ निकलने लगता हैं चिकित्सा में विलम्ब होने से कफ के साथ रक्त भी निकलने लगात है। क्षय रोगी को हल्का ज्वर निरंतर बना रहता है। रोगी को भूख नहीं लगती है। शारीरिक निर्बलता तेजी से बढ़ती है और रोगी की अस्थियां दिखाई देने लगती है। तीव्र खांसी के कारण छाती में पीड़ा होती है। रोगी को श्वास लेने में पीड़ा होती है।


क्या खाएं?

* क्षय रोगी को सुबह-शाम गाय का दूध पीना चाहिए।

* क्षय रोगी को कच्चे केले की सब्जी बनाकर खिलाने से लाभ होता है।

* लहसुन की कलियों को पीसकर मधु मिलाकर खिलाने से क्षय रोगी को बहुत लाभ होता है।

* लहसुन के रस में रुई भिगोकर रोगी को कुछ देर सुंघाने से क्षय रोग के जीवाणु नष्ट होते है।

* दूध में पीपल डालकर उबालकर, चीनी मिलाकर पिएं।

* सब्जियों से बने सूप का सेवन कराएं।

* क्षय रोगी को सेब, अंगूर, केला, खजूर, अखरोट, मुनक्के का सेवन कराएं।

* घीया, तुरई, पालक, मेथी, बथुए आदि की सब्जी खिलाएं।

* दालचीनी का बारीक चूर्ण 1 ग्राम मात्रा में मधु मिलाकर चटाने से कफ सरलता से निकल जाता है।

* मुलहठी और मिसरी कोकूट-पीसकर मधु और घी मिलाकर क्षय रोगी को सुबह-शाम चटाने से बहुत लाभ होता है।

नोटः मधु और घी समान मात्रा में नहीं मिलाना चाहिए।

क्या न खाएं?

* गुड, शक्कर का अधिक सेवन न करें।

* उष्ण मिर्च-मसालों व अम्लीय रसों से बने खाद्य पदार्थो का सेवन न करें।

* अधिक शीतल खाद्य व शीतल पेयों का सेवन न करें।

* क्षय रोगी को बाजार में चटपटे, तेल, मिर्च-मसालों से बने छोले-भठूरे, गोल-गप्पे, दही-भल्ले, चाट-पकोड़ी, समोसे, कचौड़ी आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।

* दूषित व बासी भोजन का सेवन न करें।

* फल-सब्जियों को देखकर खाएं। सड़े-गले फल-सब्जियों का सेवन न करें।

* मांस-मछली का सेवन न करें।

* शराब क्षय रोगी को सबसे अधिक हानि पहुंचाती है।

टेफलोन के दुष्प्रभाव

टेफलोन शीट तो याद होगी सबको कैसे याद नहीं होगी आजकल दिन की शुरुवात ही उससे होती है चाय बनानी है तो नॉन स्टिक तपेली (पतीली), तवा, फ्राई पेन, ना जाने कितने ही बर्तन हमारे घर में है जो टेफलोन कोटिंग वाले हैं फास्ट टू कुक इजी टू क्लीन वाली छवि वाले ये बर्तन हमारी जिंदगी का हिस्सा बन गए है, जब ये लिख रही हू तो दादी नानी वाला ज़माना याद आ जाता है जब चमकते हुए बर्तन स्टेंडर्ड की निशानी माने जाते थे आजकल उनकी जगह काले बर्तनों ने ले ली.


हम सब इन बर्तनों को अपने घर में उपयोग में लेते आए है और शायद कोई बहुत बेहतर विकल्प ना मिल जाने तक आगे भी उपयोग करते रहेंगे पर, इनका उपयोग करते समय हम ये बात भूल जाते है की ये हमारे शरीर को नुक्सान पहुंचा सकते है या हम में से कई लोग ये बात जानते भी नहीं की सच में ऐसा कुछ हो सकता है कि ये बर्तन हमारी बीमारियाँ बढ़ा सकते है या हमारे अपनों को तकलीफ दे सकते है और हमारे पक्षियों की जान भी ले सकते है.

चौंकिए मत ये सच है. हालाँकि टेफलोन को 20 वी शताब्दी की सबसे बेहतरीन केमिकल खोज में से एक माना गया है स्पेस सुइट और पाइप में इसका प्रयोग उर्जा रोधी के रूप में किया जाने लगा पर ये भी एक बड़ा सच है की ये स्वास्थ के लिए हानिकारक है इसके हानिकारक प्रभाव जन्मजात बिमारियों ,सांस की बीमारी जेसी कई बिमारियों के रूप में देखे जा सकते हैं.

ये भी सच है की जब टेफलोन कोटेड बर्तन को अधिक गर्म किया जाता है तो पक्षियों की जान जाने का खतरा काफी बढ़ जाता है कुछ ही समय पहले 14 पक्षी तब मारे गए जब टेफलोन के बर्तन को पहले से गरम किया गया और तेज आंच पर खाना बनाया गया, ये पूरी घटना होने में सिर्फ 15 मिनिट लगे.

टेफलोन कोटेड बर्तनों में सिर्फ 5 मिनिट में 721 डिग्री टेम्प्रेचर तक गर्म हो जाने की प्रवृति देखी गई है और इसी दोरान 6 तरह की गैस वातावरण में फैलती है इनमे से 2 एसी गैस होती है जो केंसर को जन्म दे सकती है. अध्ययन बताते हैं कि टेफलोन को अधिक गर्म करने से टेफलोन टोक्सिकोसिस (पक्षियों के मामले में ) और पोलिमर फ्यूम फीवर ( इंसानों के मामले में ) की सम्भावना बहुत बढ़ जाती है .



टेफलोन केमिकल के शरीर में जाने से होने वाली बीमारियाँ:



1 . पुरुष इनफर्टिलिटी : हाल ही में किए गए एक डच अध्यन में ये बात सामने आई है लम्बे समय तक टेफलोन केमिकल के शरीर में जाने से पुरुष इनफर्टिलिटी का खतरा बढ़ जाता है और इससे सम्बंधित कई बीमारियाँ पुरुषों में देखी जा सकती है.

२. थायराइड : हाल ही में एक अमेरिकन एजेंसी द्वारा किया गए अध्यन में ये बात सामने आई क2 टेफलोन की मात्र लगातार शरीर में जाने से थायराइड ग्रंथि सम्बन्धी समस्याएं हो सकती है.

3. बच्चे को जन्म देने में समस्या : केलिफोर्निया में हुई एक स्टडी में ये पाया गया की जिन महिलाओं के शरीर में जल ,वायु या भोजन किसी भी माध्यम से पी ऍफ़ ओ (टेफलोन) की मात्रा सामान्य से अधिक पाई गई उन्हें बच्चो को जन्म देते समय अधिक समस्याओं का सामना करना पड़ा इसी के साथ उनमे बच्चो को जन्म देने की शमता भी अपेक्षाकृत कम पाई गई.

4 . केंसर या ब्रेन ट्यूमर का खतरा : एक प्रयोग के दौरान जब चूहों को पी ऍफ़ ओ के इंजेक्शन लगाए गए तो उनमे ब्रेन ट्यूमर विकसित हो गया साथ ही केंसर के लक्षण भी दिखाई देने लगे. पी ऍफ़ ओ जब एक बार शरीर के अन्दर चला जाता है तो लगभग 4 साल तक शरीर में बना रहता है जो एक बड़ा खतरा हो सकता है .

5. शारीरिक समस्याएं व अन्य बीमारियाँ : पी ऍफ़ ओ की अधिक मात्रा शरीर में पाई जाने वाली महिलाओं के बच्चो पर भी इसका असर जन्मजात शारीरिक समस्याओं के रूप में देखा गया है इसीस के साथ अद्द्याँ में ये सामने आया है की पी ऍफ़ ओ की अधिक मात्रा लीवर केंसर का खतरा बढ़ा देती है .

टेफलोन के दुष्प्रभाव से बचने के उपाय:

1. टेफलोन कोटिंग वाले बर्तनों को कभी भी गैस पर बिना कोई सामान डाले अकेले गर्म होने के लिए ना छोड़े.

2. इन बर्तनों को कभी भी ४५० डिग्री से अधिक टेम्प्रेचर पर गर्म ने करे सामान्यतया इन्हें ३५० से ४५० डिग्री तक गर्म करना बेहतर होता है

3. टेफलोन कोटिंग वाले बर्तनों में पक रहा खाना बनाने के लिए कभी भी मेटल की चम्मचो का इस्तेमाल ना करे इनसे कोटिंग हटने का खतरा बढ़ जाता है

4. टेफलोन कोटिंग वाले बर्तनों को कभी भी लोहे के औजार या कूंचे ब्रुश से साफ़ ना करे , हाथ या स्पंज से ही इन्हें साफ़ करे

5. इन बर्तनों को कभी भी एक दुसरे के ऊपर जमाकर ना रखे

6. घर में अगर पालतू पक्षी है तो इन्हें अपने किचन से दूर रखें

7. अगर गलती से घर में एसा कोई बर्तन ज्यादा टेम्प्रेचर पर गर्म हो गया है तो कुछ देर के लिए घर से बाहर चले जाए और सारे खिड़की दरवाजे खोल दे पर ये गलती बार बार ना दोहराएं क्यूंकि बाहर के वातावरण के लिए भी ये गैस हानिकारक है

8. टूटे या जगह ,जगह से घिसे हुए टेफलोन कोटिंग वाले बर्तनों का उपयोग बंद कर दे क्यूंकि ये धीरे धीरे आपके भोजन में ज़हर घोल सकते है ,अगर आपके बर्तन नहीं भी घिसे है तो भी इन्हें २ साल में बदल लेने की सलाह दी जाती है

जहाँ तक हो सके इन बर्तनों कम ही प्रयोग करिए इन छोटी छोटी बातों का ध्यान रखकर आप अपने और अपने परिवार के स्वास्थ को बेहतर बना सकते हैं.

SUSHIL KUMAR DWIVEDI
PGT BIO
K. V DHOLCHERA
ASSAM
INDIA

Wednesday, December 5, 2012

अन्न का अपमान करता भारत

एक जमाना था जब भारतीय प्रधानमंत्री पश्चिमी देशों से अन्न मांगा करते थे. फिर हरित क्रांति हुई. आज पर्याप्त अनाज उग रहा है लेकिन बुरे प्रंबधन के चलते आधा अन्न बर्बाद जा रहा है. बर्बादी वहां, जहां करोड़ों गरीब हैं.

अंग्रेजी में एक पुरानी कहावत है कि 'देयर इज मेनी स्लिप्स बिटवीन द कप एंड लिप.' यानी हाथ में पकड़े चाय के प्याले का होठों तक पहुंचने के बीच भी बहुत कुछ हो सकता है. यह कहावत खाद्यान्न के खेतों से लेकर उपभोक्ताओं तक पहुंचने की प्रक्रिया पर भी हूबहू लागू होती है. कृषि प्रधान देश कहे जाने वाले भारत में अनाज के खेतों से आम लोगों के रसोईघरों तक पहुंचने के बीच जो नुकसान होता है, उसके आंकड़े भयावह हैं. यह नुकसान इतना ज्यादा है कि इससे लाखों लोगों को पूरे साल भरपेट भोजन मुहैया कराया जा सकता है. जिस देश की 60 फीसदी आबादी अपनी आजीविका के लिए खेती पर निर्भर हो, वहां यह स्थिति बेहद दयनीय है कि एक तरफ गरीबों के पास खाने के लिए अनाज नहीं है तो दूसरी तरफ लाखों टन अनाज सरकार की उपेक्षा और गोदामों में हो रही लापरवाही की वजह से खराब होता है. इतना अनाज बर्बाद हो रहा है जितना अगर गरीबों में बांट दिया जाए तो वह वर्षों तक खा सकते हैं.

लेकिन सरकारें या अनाज को खेतों से लेकर दुकानों और घरों तक पहुंचाने वाली सरकारी एजेंसियां इस मामले पर आश्चर्यजनक तौर पर चुप हैं. इस नुकसान को कम करने के लिए केंद्र सरकार ने हाल में नेशनल पालिसी आन हैंडलिंग एंड स्टोरेज आफ फूडग्रेन्स नामक एक नई नीति बनाई है. इसमें खेती के स्तर पर होने वाले नुकसान को कम करने के लिए मशीनों के ज्यादा इस्तेमाल (मैकेनिकल फार्मिंग) को बढ़ावा देने के अलावा अनाज की ढुलाई खास तौर पर बने ट्रकों में करने, भंडारण यानी स्टोरेज को आधारभूत क्षेत्र का दर्जा देने और निजी क्षेत्र को स्टोरेज सुविधाएं बनाने के लिए प्रोत्साहित करने की बात कही गई है. लेकिन इस पर अमल करने की दिशा में अब तक कोई प्रगति नहीं हो सकी है.

धान और गेहूं भारत के दो मुख्य फसलें हैं. लेकिन खेतों में उपजने से लेकर दुकानों तक पहुंचने के सफर में इन खाद्यान्नों का जितना नुकसान होता है उसके आंकड़े हैरत में डाल देते हैं. पहले तो नुकसान होता है खेती के दौरान. खेत में प्रति क्विंटल धान पर 3.82 किलो का नुकसान होता है जबकि गेंहू के मामले में यह 3.28 किलो है. इसके बाद अनाज की थ्रेसिंग या मड़ाई (पौधों से दानों को अलग करने की प्रक्रिया) के दौरान प्रति क्विंटल लगभग पांच सौ ग्राम का नुकसान होता है.

किसान जब अपनी फसल को मंडी में बेच देते हैं तो उसका भंडारण किया जाता है. लेकिन भारत में भंडारण की पर्याप्त क्षमता नहीं होने की वजह से इस दौरान चावल के मामले में 1.2 किलो प्रति क्विंटल और गेहूं के मामले में 0.95 किलो प्रति क्विंटल का नुकसान होता है. भंडारण के दौरान होने वाले नुकसान की वजह अलग-अलग गोदामों की कमी, भंडारण का खराब आधारभूत ढांचा, चूहों व दूसरे कीड़ों की समस्या और कोल्ड स्टोरेजों में मौजूद नमी है. खाद्य विशेषज्ञों का कहना है कि अनाज के खेत-खलिहान से लेकर बाजार तक के सफर में कुल फसल का लगभग 40 फीसदी बर्बाद हो जाता है. इसमें 75 फीसदी नुकसान खेत-खलिहान के स्तर पर होता है और बाकी बाजार के स्तर पर. हर साल लाखों टन अनाज की इस बर्बादी से जहां देश के करोडों लोग भूखे रहने पर मजबूर हैं वहीं आम उपभोक्ताओं को कई गुनी ज्यादा कीमत पर इन वस्तुओं को खरीदना पड़ता है. यह अलग बात है कि कमीशन एजेंटों, मुनाफाखोरों और बाजार के विभिन्न स्तरों पर व्यापारियों के अपना मुनाफा जोड़ने के वजह से किसानों को कई बार लागत मूल्य से भी कम कीमत पर अपनी उपज बेचनी पड़ती है.

धान का कटोरा कहे जाने वाले पश्चिम बंगाल के बर्दवान जिले में धान की अच्छी कीमत नहीं मिलने की वजह से इस साल दो दर्जन से भी ज्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं. बर्दवान के एक किसान जितेन राय कहते हैं, "खेती में कुछ नहीं बचा है. सब बर्बाद हो गया है. लोन कहां से चुकाएंगे. कैसे चुकाएंगे." उपभोक्ताओं को भले ही महंगी कीमत पर अनाज खरीदना पड़े, किसानों के लिए यह खेती अब मुनाफे का सौदा नहीं रही. बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के रहने वाले मनोज प्रसाद ने अपने तमाम खेत बेच दिए हैं. वह अब शहर में रह कर दूसरा काम करते हैं. लेकिन आखिर क्यों. इस सवाल पर मनोज कहते हैं, "खेती की जो बात है, किसान फसल कहीं और उगाता है. फिर वहां से और एक जगह अनाज जाता है. एक से दूसरी जगह जाते समय सामान नष्ट हो जाता है. खेती वाले लोगों को कुछ फायदा नहीं होता. बस यही बात है, कुछ और नहीं."


फिलहाल भारत में सप्लाई चेन की तस्वीर काफी उलझी हुई है. इसका 95 फीसदी हिस्सा असंगठित क्षेत्र के हाथों में है. एक उत्पाद ग्राहक तक पहुंचने से पहले औसतन छह से सात बिचौलियों के हाथों से होकर गुजरता है. अनाज जितने हाथ बदलेगा, उसका नुकसान (ट्रांजिट लास) भी उतना ही ज्यादा होगा.

मंडी में जाने के बाद किसानों के पास अपना माल आढ़ती को बेचने के सिवा कोई विकल्प नहीं बचता. अक्सर बाजार में मंदी की दुहाई देकर आढ़ती उससे औने-पौने दाम में फसल खरीद लेता है और बाद में ज्यादा मुनाफा लेकर बेच देता है. मंडी में पांच रुपये किलो खरीदा जाने वाले टमाटर की कीमत आम उपभोक्ता तक पहुंचते - पहुंचते 20 से 50 रुपये किलो हो जाती है. उत्तर भारत की कुछ मंडियों में सीजन के वक्त टमाटर जैसी फसल एक रुपये किलो बिकती है. इसकी वजह से किसान के लिए ट्रैक्टर और ढुलाई का खर्च निकालना तक मुश्किल हो जाता है. देर हुई तो फसल खराब हो जाएगी, इस मजबूरी के चलते भी उन्हें आढ़तियों से समझौता करना पड़ता है.
भुकमरी और बर्बादीयही वजह है कि मुर्शिदाबाद के किसान समर जाना बिचौलियों को हटाने के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की वकालत करते हैं. वह कहते हैं, "एफडीआई आने पर अच्छा होगा. विदेशी कंपनी किसानों से सीधे माल खरीदेगी तो उनको फायदा होगा. इस समय तो दलाल ही मुनाफा कमा लेते हैं. किसानों को फसलों की बढ़िया कीमत नहीं मिलती. एफडीआई के आने पर दलाल संस्कृति खत्म हो जाएगी."

एशिया में अनाजों की सबसे बड़ी मंडी कोलकाता का बड़ा बाजार है, यहां थोक व्यापारी संघ के एक प्रवक्ता सुनील सेन कहते हैं, "अनाज की ढुलाई के दौरान नुकसान तो होता ही है. अक्सर अनाज की बोरियां फटने की वजह से कई किलो माल बर्बाद हो जाता है. ट्रकों पर माल लादने और उतारने के क्रम में भी काफी नुकसान होता है. इस नुकसान को कम करना जरूरी है. व्यापारी तो अपना मुनाफा जोड़ लेते हैं. ट्रक मालिकों को भी अपना किराया मिल जाता है. लेकिन इस नुकसान का खमियाजा आम उपभोक्ताओं को ही उठाना पड़ता है."

बड़ा बाजार के एक थोक व्यापारी दिनेश अग्रवाल भी सुनील की बातों का समर्थन करते हैं. वह कहते हैं, "खेत से दुकानों तक पहुंचने में काफी अनाज बर्बाद हो जाता है. लेकिन हम तो अपना मुनाफा जोड़ लेते हैं. आखिर हम घाटा सह कर तो व्यापार नहीं करेंगे. नतीजा यह होता है कि अनाज के नुकसान के अनुपात में उसकी कीमतें बढ़ती जाती हैं."

किसानों को हर साल ज्यादा पैदावार की समस्या से दो-चार होना पड़ता है. हाल में पश्चिम बंगाल और पंजाब समेत देश के विभिन्न राज्यों में दो रुपये किलो आलू बिकने की नौबत आई तो किसानों ने कई ट्रक आलू सड़क पर फेंक दिया. फल-सब्जी पैदा करने वाला दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश होने के बावजूद निर्यात में भारत की हिस्सेदारी फलों में महज 0.5 फीसदी और सब्जियों में 1.7 फीसदी है. केंद्र सरकार के मुताबिक कुल पैदावार की अनुमानित कीमत 10 खरब रुपये है . लेकिन इसमें से 57 फीसदी बर्बाद हो जाता है क्योंकि इसके संरक्षण के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचा नहीं है. यहां सालाना पैदा होने वाले 20 करोड़ टन फल-सब्जी में से सिर्फ 2.36 करोड़ टन को ही कोल्ड स्टोरेज में जगह मिल पाती है. इनमें भी 80 फीसदी हिस्सा सिर्फ आलू का है.

खाद्यान्नों के भंडारण के लिए केंद्र सरकार की ओर से गठित भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के पास इस समय 130 लाख टन अनाज भंडारण की क्षमता है. जबकि उसने 150 लाख टन से ज्यादा क्षमता वाले कई गोदाम सरकार और निजी एजेंसियों से किराये पर ले रखे हैं. बावजूद इसमें समुचित प्रबंधन और रखरखाव की कमी की वजह से उन गोदामों में हर साल लाखों टन माल सड़ जाता है. चालू वित्त वर्ष के बजट में भंडारण की क्षमता बढ़ाने के लिए पांच हजार करोड़ रुपये के आवंटन का प्रस्ताव रखा है. पिछले साल के बजट में इस मद में दो हजार करोड़ रुपये आवंटित किये गए थे. पिछले एक साल में सरकार ने 20 लाख टन भंडारण की अतिरिक्त क्षमता को मंजूरी दी है. लेकिन इसके बावजूद यह समस्या जल्दी सुलझने की उम्मीद नहीं नजर आती.
Compiled By
Susheel Dwivedi
PGT Biology
Kendriya Vidyalaya Dholchera
Assam
India

कैंसर को खत्म करने वाला वायरस

कैंसर के कारण हर साल दुनिया भर में लाखों लोग जान गंवा रहे हैं. यह बीमारी बदलती जीवनशैली को भी दर्शाती है. अब तक ऑपरेशन या कीमोथेरेपी से ही इसका इलाज किया जाता है. लेकिन अब जर्मन वैज्ञानिक एक वायरस की मदद से कैंसर से लड़ने की कोशिश कर रहे हैं. जानवरों में मिलने वाले इस विषाणु का नाम पारवोवाइरस है.

वैज्ञानिकों का दावा है कि पारवोवाइरस कैंसर को जड़ से खत्म कर सकता है. जर्मनी के कैंसर रिसर्च सेंटर में कई मरीजों पर इसका परीक्षण किया जा रहा है. सबसे पहले ब्रेन ट्यूमर के शिकार लोगों के सिर में पारवोवाइरस की खुराक डाली गई. इसके बाद ट्यूमर का ऑपरेशन किया गया और फिर पारवोवाइरस की खुराक डाली गई. कुछ महीनों बाद जब वैज्ञानिकों ने मरीजों का निरीक्षण किया तो पता चला कि कैंसर पूरी तरह खत्म हो चुका है. वह लौटा भी नहीं. दरअसल पारवोवाइरस कैंसर की कोशिकाओं को जड़ से खत्म करने लगता है. मंथन में इस पर विशेष रिपोर्ट और चर्चा है.

मोंनसेंटो के मक्के पर विवाद लेकिन कैंसर आखिर होता क्यों है. मेडिकल साइंस के पास अब भी इसका ठोस जवाब नहीं है. यूरोपीय संघ में खाने पीने की चीजों की गुणवत्ता को लेकर तीखी बहस छिड़ी हुई है. फ्रांस के वैज्ञानिकों का दावा है कि जीन संवर्धित मक्के की एक किस्म चूहों को खिलाने के बाद उन्होंने चूहों में कैंसर पाया. अब जर्मनी, फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया में जानवरों को खिलाये जाने वाले इस मक्का पर बहस हो रही है. मक्का अमेरिकी कंपनी मोंनसेंटो का है.
Compiled by ---
Sushil Kumar Dwivedi
Pawai,Post-Jariya
District-Hamirpur
U P INDIA

Tuesday, December 4, 2012

गर्मियों में आंखों की समस्‍याएं

गर्मियां आते ही, त्‍वचा की समस्‍याओं के साथ ही आंखो की समस्‍याएं भी बढ़ जाती हैं। मौसम के बदलते मिज़ाज के कारण हमें कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इन्‍हीं समस्‍याओं में से एक ही आंखों की समस्‍याएं। ऐसे में आंखों में खुजली-जलन जैसी समस्‍याएं होती हैं। गर्मियों में अकसर लू और धूल भ्री आंधी चलती है। ऐसे में घर से बाहर निकलने पर आंखों और त्‍वचा की समस्‍याएं होना आम है। आइये जानें इस समस्‍याओं से कैसे बचा जा सकता हैः


आंखों की समस्‍याओं से बचने के लिए कुछ बातों का ध्‍यान रखें-



धूपी चश्‍मे का प्रयोग करें।

हो सके आंधी आने पर या लू चलने के समय घर से बाहर ना निकलें।

तेज़ धूप में जाने से बचें।

दिन के समय या तेज़ धूप में सूरज की ओर ना देखें।


आंखों की समस्‍याएं होने परः



हो सकता है तेज़ धूप से घर में आने पर, आपकी आंखों में खुजली हो। ऐसे में आंखों को हाथ से बिलकुल ना छुएं।

ठंडे पानी से आंखों पर हल्‍के हाथ से छींटे मारें।

आंखों को आराम देने के लिए, आंखों पर खीरा या टमाटर भी रख सकते हैं।

हो सके, तो आंखों को कई बार धोएं।
Compiled By-









Susheel Dwivedi



Village-Pawai



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'नेचर एंड नेचर जेनेटिक्स' पत्रिका में प्रकाशित एक शोध के अनुसार डीएनए की रूपरेखा के कारण धूम्रपान करने वालों और धूम्रपान छोड़ चुके लोगों में फेफड़े का कैंसर होने की संभावना ज़्यादा होती है.

वैज्ञानिकों के तीन अंतरराष्ट्रीय दलों का कहना है कि उन्होंने मनुष्यों के जीनोम में एक ऐसे क्षेत्र की खोज कर ली है जिसमें ऐसे जीन्स होते हैं जिससे धूम्रपान करने वालों में इस बीमारी के फैलने का ख़तरा ज़्यादा होता है.

शोध दल ने क्रोमोसोम-15 यानी गुणसूत्र में ऐसे दो जीनोम क्षेत्रों के बारे में बताया है.

हलांकि गुणसूत्र लोगों में आम है लेकिन फेफड़े के कैंसर का ख़तरा केवल उन्ही लोगों में होता है जो धूम्रपान करते हैं.

अलग-अलग हैं मत

इस बारे में शोधकर्ताओं के विचार अलग-अलग हैं कि जीन्स में हुआ परिवर्तन फेफड़े के कैंसर को कैसे प्रभावित करता है.


शोध के अधिकतम हिस्से को अंजाम देने वाली आइसलैंड की एक कंपनी ‘डिकोड जेनेटिक्स’ का कहना है कि शोध बताता है कि जिन लोगों में इस तरह के जीन्स होते हैं, वे एक बार धूम्रपान शुरु करने के बाद तंबाकू के ज़्यादा आदी हो जाते हैं.

हम जानते हैं कि धूम्रपान इस तरह के कैंसर को बढ़ाता है. फेफड़े के कैंसर के दस में से नौ मामलों में धूम्रपान ही ज़िम्मेदार होता है
शोध

हर शोध दल ने धूम्रपान कर रहे और छोड़ चुके हज़ारों लोगों के डीएनए का अध्ययन किया लेकिन सभी ने भिन्न नमूने के साथ काम किया चाहे सभी लोग यूरोप के ही थे.



हलांकि, उन सभी ने क्रोमोसोम-15 के दोनों बिंदुओं पर एक समान तरह के जीन परिवर्तन का ढ़ाचा देखा. इस परिवर्तन की तुलना उन लोगों से की गई जिन्हें फेफड़े का कैंसर था और जिनमें ऐसा नहीं है.

Compiled By-

Susheel Dwivedi
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