Tuesday, November 26, 2019

आस्थमा अटैक से कैसे बचें
अस्‍थमा या दमा ऐसी बीमारी है जो कि फेफड़ो को प्रभावित करती है। अस्‍थमा से बचने के लिए अस्‍थमा के कारणों को समझना बेहद आवश्‍यक है। अस्‍थमा ऐसी बीमारी है जिसमें फेफड़ो तक सही मात्रा में आक्सीजन नहीं पंहुच पाता और सांस लेने में तकलीफ बढ़ जाती है। आस्थमा अटैक कभी भी कहीं भी हो सकता है। आस्थमा अटैक तब होता है जब धूल के कण आक्सीजन ले जाने वाली नलियों को बंद कर देते हैं, ऐसा ठंड या एक्सरसाइज से भी हो सकता है। अस्‍थमा अटैक रात को भी हो सकता है।
आस्थमा से बचाव के लिए आप और आपके आसपास वालों को आस्थमा से बचने के तरीकों का पता होना चाहिए। कभी-कभी आराम करने से या इन्हेलर की मदद से आस्थमा के अटैक से राहत मिल सकती है। आस्थमा के अटैक से बचने के लिए जितनी जल्‍दी हो सके दवाईयों या इन्‍हेलर का प्रयोग किया जाना चाहिए।


आपको पता होना चाहिए कि आप किसी प्रकार की आकस्मिक परिस्थितियों का सामना कैसे कर सकते है। अस्‍थमा अटैक से बचने के टिप्‍सः

•घबराए नही:घबराने से मांस पेशियों पर तनाव बढ़ता है जिससे की सांस लेने में परेशानी बढ़ सकती है।

•हिम्मत न हारें और मुंह से सांस लेते रहें, फिर मुंह बंद करके नाक से सांस लें। धीरे धीरे सांस अन्दर की तरफ लें और फिर बाहर की तरफ छोड़े।

•सांस अन्दर की तरफ लेने और बाहर की तरफ छोड़ने के बीच में सांस न रोकें ।

•पीक फ्लो मीटर की मदद से अपने अटैक की स्थिति नापें। पीक फ्लो मीटर सस्ते इन्सट्रुमेट हैं जिनसे अटैक की स्थिति का पता चलता है।

•अगर हो सके तो इन्हेलेन्ट का प्रयोग करें और कोशिश करें हर 20 मिनट पर दो बार इन्हेलेन्ट का प्रयोग करने की।

•धुंए व धूल से दूर रहें।

•अपने ट्रीटमेंट के रिस्पांस को परखें। खराब रिस्पांस तब होता है जब आपको खांसी आयें। अच्छा रिस्पांस तब होता है जब आपको सांस लेने में अच्छा लगे और आराम महसूस हो।

•डाक्टर के द्वारा दिये गये निर्देशों का पालन करें अधिक परेशानी होने पर चिकित्‍सक से जल्‍दी से जल्‍दी संपर्क करें।

•डाक्टर के द्वारा दी दवाएं समय पर लें। अगर दवाओं से भी आपकी परेशानी ठीक नहीं हो रही तो याद रखें कि यह मौका खुद की मदद करने का है।

•अगर आपको सांस लेने में परेशानी बढ़ती जा रही है तो तुरंत धूल वाली जगह से दूर हट कर खड़े हो जायें।

हवा साफ करने के लिए लगायें एयर प्युरीफयिंग इनडोर पौधे-
प्रदूषण के बीच लखनऊ में इन दिनों स्मॉग शब्द भी बहुत चर्चा में है।  स्मॉग दो शब्दों से मिलकर बना एक शब्द है। इसका मतलब है धुँआ अर्थात स्मोक और  और धुंध अर्थात फोग  का मिश्रण। ।  हवा में जहरीली गैसों की मात्रा बढ़ने से लोगों को सांस लेने में तकलीफ होने के साथ-साथ आंखों में जलन की भी शिकायत सामने आ रही है। दरअसल, बढ़ते प्रदूषण के चलते ये परेशानियां होना आम बात है। ऐसा तब होता है जब हवा की गुणवत्ता अर्थात एयर क्वालिटी इंडेक्स खतरनाक रूप से बढ़ जाता है अगर एयर क्वालिटी इंडेक्स 0-50 के बीच है तो इसे अच्छा माना जाता है, 51-100 के बीच में यह संतोषजनक होता है, 101-200 के बीच में औसत, 201-300 के बीच में बुरा, 301-400 के बीच में हो तो बहुत बुरा और अगर यह 401 से 500 के बीच हो तो इसे गंभीर माना जाता है.लखनऊ में पिछले पांच दिन से कई जगह पीएम 2.5 अपने उच्चतम स्तर 400 के पार दर्ज किया गया. पीएम 2.5 हवा में तैरने वाले वाले वो महीन कण हैं जिन्हें हम देख नहीं पाते हैं. लेकिन सांस लेने के साथ ये हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं. वायुमंडल में इनकी मात्रा जितनी कम होती है, हवा उतनी ही साफ़ होती है. इसका हवा में सुरक्षित स्तर 60 माइक्रोग्राम है. इसके अलावा पीएम 10 भी हवा की गुणवत्ता को प्रभावित करता है. ये सूक्ष्म कण हमारी नाक के बालों से भी नहीं रुकते और फेफड़ों तक पहुंचकर उन्हें ख़राब करते हैं.
बाहर के प्रदुषण के ज्यादा होने से घर के अन्दर अर्थात इनडोर प्रदुषण का स्तर भी तेजी से बढता हुआ दिख रहा है  एयर कंडीशनर लगे कमरों में बंद हम खुली हवा की महक भूल से गए है. यह बंद-बंद सी हवा हमारे स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह होती है जो सांस से सम्बंधित रोगों (Trouble breathing), एलर्जी, सरदर्द, थकान और अन्य बिमारियों को जन्म दे सकती है ,इसके अतिरिक्त हमारे रोज़ के रहन सहन में ऐसी चीज़े भी है जो घरो की हवा में विषैले तत्व और गैस धीरे धीरे छोडती रहती है. फार्मेल्डीहाइड, कार्बन डाई-ऑक्साईड, कार्बन मोनो ऑक्साईड, बेंजीन, नाइट्रोजन ऑक्साईड ऐसी विषैली गैसें (Poisonous gases) है, जो सेहत के लिए हानिकारक हैI प्लास्टिक और रासायनिक पेंट्स, प्लास्टिक के सामानों, मच्छर कोकरोच मारने वाले स्प्रे, वार्निश, नए कालीन, रासायनिक एयर फ्रेशनेर्स आदि में पाए जाते है जो हमारे घरो को विषैला कर रहे है.इनसे बचने का उपाय है घरो में लगातार साफ़ हवा का संचार. I इसके अतिरिक्त एक उपाय यह भी है कि हम ऐसे Air purifying plants को गमले में लगायें जो कि ज़हरीली गैसों को सोखते है. ये Indoor plants प्राणदायक ऑक्सीजन गैस (Oxygen gas ) बनाते है और घर की हवा को शुद्ध कर सकते है.ये 21 ऐसे पौधें हैं जो कि आसानी से किसी भी नर्सरी से  मिल जाते है और जो इन खूबियों से भरपूर हैं.डेट पाम या बीटल पाम – Areca Palm ,एलोवेरा – Aloe-Vera घृत-कुमारी या ग्वारपाठा ,रबर प्लांट – Rubber plant ,स्नेक प्लांट – Snake plant ,स्पाइडर प्लांट – Spider plant लेडी पाम – Lady Palm ,पीस लिली – Peace Lily मनी प्लांट – Money plant or Golden Pothos ,जरबेरा – Gerbera Daisy ,इंग्लिश आइवी – English Ivy ,बैम्बू पाम – Bamboo Plam ,बोस्टन फ़र्न – Boston Fern नीम का पौधा – Neem plnat ,तुलसी का पौधा – Holy Basil plant ,केला का पौधा – Banana plant ,वीपिंग फिग – Weeping Fig,ड्रेकेना के पौधे – Warneck Draceana ,हार्ट लीफ फिलॉडेंड्रॉन – Heart leaf philodendron ,चायनीज एवरग्रीन – Chinese evergreen plant ,क्रिसमस कैक्टस – Christmas Cactus,आर्किड – Orchid plant .
कुछ और उपाय जिन्हें भी अपनाया जा सकता है इनडोर प्रदुषण के दौरान  
धुआं और धूल से हर संभव बचने की कोशिश करें.
अस्थमा के मरीज़ निबोलाइजर और इनहेलर हमेशा साथ रखें.
एन-95 मास्क पहनें. ये आपको धूल से होने वाली परेशानी से बचाएगा.
पानी से भीगे रूमाल का भी इस्तेमाल कर सकते हैं.
आंख और नाक लाल हो तो ठंडे पानी से उसे धोएं.
होंठ पर जलन होने पर उसे धोएं.
कुछ सुझाव दिलाएंगे आउटडोर प्रदुषण से रहत
·         सुबह की सैर और शाम बाहर निकलने से बचें.
·         लंबे समय तक भारी परिश्रम से बचें.
·         लंबी सैर की जगह कम दूरी तक टहलें. इस दौरान कई ब्रेक लें.
·         सांस से जुड़ी किसी भी तरह की परेशानी होने पर शारीरिक क्रियाएं बंद कर दें.
·         प्रदूषण ज़्यादा महसूस होने पर घर की खिड़कियां बंद कर दें.
·         लकड़ी, मोमबत्ती और अगरबत्ती जलाने से परहेज़ करें.
·         कमरे में पानी से पोछा लगाएं ताकि धूल-कण कम हो सकें.
·         बाहर जाने पर एन-95 और पी-100 मास्क का इस्तेमाल करें.