Thursday, December 6, 2012

क्षय रोग (TUBERCULOSIS)





दशकों पहले क्षय रोग टी.बी को कभी नष्ट न होने वाला रोग समझा जाता था। क्षय राग से स्त्री-पुरुष बहुत भयभीत रहते थे। घर में किसी को क्षय रोग हो जाने पर उसे अलग कमरे में रखा जाता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। क्षय रोग को सरलता से नष्ट कर दिया जाता है।

उत्पत्तिः

शारीरिक रूप से निर्बल स्त्री-पुरुष पौष्टिक भोजन के अभाव में क्षय रोग से पीड़ित होते है। शारीरिक निर्बलता में जब अधिक शारीरिक व मानसिक श्रम किया जाता है। तो क्षय रोग उसे घेर लेता है। क्षय रोग की उत्पत्ति ट्यूबरक्लोसिस जीवाणुओं के शरीर में पहचने के काण होती है। दूषित भोजन और दूषित जल से इस रोग के जीवाणु स्वस्थ स्त्री-पुरुष तक पहुंच जाते है। किसी रोगी स्त्री-पुरुष से बातें करने से भी जीवाणु वायु में उड़कर दूसरे को रोगी बना देते है। रोगी पुरुष के साथ खाने-पीने से भी इस रोग का संक्रमण हो सकता है।



गंदी बस्तियों में, अंधेरे कमरों में दुषित वायु के वातरवरण में रहने से भी क्षय रोग की उत्पत्ति होती है। अधिक बच्चों को जन्म देने वाली स्त्रियां कुपोषण के कारण क्षय रोग की शिकार होती है। सहवास में अधिक संलग्न रहने वाले व्यक्ति भी क्षय रोग से पीड़ित होते है।

लक्षण
क्षय रोग के जीवाणुओं के संक्रमण से फुप्फुसों (फेफड़ों) में जख्म बनते है। रोगी को खांसी होती है और फिर खांसी के साथ कफ निकलने लगता हैं चिकित्सा में विलम्ब होने से कफ के साथ रक्त भी निकलने लगात है। क्षय रोगी को हल्का ज्वर निरंतर बना रहता है। रोगी को भूख नहीं लगती है। शारीरिक निर्बलता तेजी से बढ़ती है और रोगी की अस्थियां दिखाई देने लगती है। तीव्र खांसी के कारण छाती में पीड़ा होती है। रोगी को श्वास लेने में पीड़ा होती है।


क्या खाएं?

* क्षय रोगी को सुबह-शाम गाय का दूध पीना चाहिए।

* क्षय रोगी को कच्चे केले की सब्जी बनाकर खिलाने से लाभ होता है।

* लहसुन की कलियों को पीसकर मधु मिलाकर खिलाने से क्षय रोगी को बहुत लाभ होता है।

* लहसुन के रस में रुई भिगोकर रोगी को कुछ देर सुंघाने से क्षय रोग के जीवाणु नष्ट होते है।

* दूध में पीपल डालकर उबालकर, चीनी मिलाकर पिएं।

* सब्जियों से बने सूप का सेवन कराएं।

* क्षय रोगी को सेब, अंगूर, केला, खजूर, अखरोट, मुनक्के का सेवन कराएं।

* घीया, तुरई, पालक, मेथी, बथुए आदि की सब्जी खिलाएं।

* दालचीनी का बारीक चूर्ण 1 ग्राम मात्रा में मधु मिलाकर चटाने से कफ सरलता से निकल जाता है।

* मुलहठी और मिसरी कोकूट-पीसकर मधु और घी मिलाकर क्षय रोगी को सुबह-शाम चटाने से बहुत लाभ होता है।

नोटः मधु और घी समान मात्रा में नहीं मिलाना चाहिए।

क्या न खाएं?

* गुड, शक्कर का अधिक सेवन न करें।

* उष्ण मिर्च-मसालों व अम्लीय रसों से बने खाद्य पदार्थो का सेवन न करें।

* अधिक शीतल खाद्य व शीतल पेयों का सेवन न करें।

* क्षय रोगी को बाजार में चटपटे, तेल, मिर्च-मसालों से बने छोले-भठूरे, गोल-गप्पे, दही-भल्ले, चाट-पकोड़ी, समोसे, कचौड़ी आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।

* दूषित व बासी भोजन का सेवन न करें।

* फल-सब्जियों को देखकर खाएं। सड़े-गले फल-सब्जियों का सेवन न करें।

* मांस-मछली का सेवन न करें।

* शराब क्षय रोगी को सबसे अधिक हानि पहुंचाती है।

टेफलोन के दुष्प्रभाव

टेफलोन शीट तो याद होगी सबको कैसे याद नहीं होगी आजकल दिन की शुरुवात ही उससे होती है चाय बनानी है तो नॉन स्टिक तपेली (पतीली), तवा, फ्राई पेन, ना जाने कितने ही बर्तन हमारे घर में है जो टेफलोन कोटिंग वाले हैं फास्ट टू कुक इजी टू क्लीन वाली छवि वाले ये बर्तन हमारी जिंदगी का हिस्सा बन गए है, जब ये लिख रही हू तो दादी नानी वाला ज़माना याद आ जाता है जब चमकते हुए बर्तन स्टेंडर्ड की निशानी माने जाते थे आजकल उनकी जगह काले बर्तनों ने ले ली.


हम सब इन बर्तनों को अपने घर में उपयोग में लेते आए है और शायद कोई बहुत बेहतर विकल्प ना मिल जाने तक आगे भी उपयोग करते रहेंगे पर, इनका उपयोग करते समय हम ये बात भूल जाते है की ये हमारे शरीर को नुक्सान पहुंचा सकते है या हम में से कई लोग ये बात जानते भी नहीं की सच में ऐसा कुछ हो सकता है कि ये बर्तन हमारी बीमारियाँ बढ़ा सकते है या हमारे अपनों को तकलीफ दे सकते है और हमारे पक्षियों की जान भी ले सकते है.

चौंकिए मत ये सच है. हालाँकि टेफलोन को 20 वी शताब्दी की सबसे बेहतरीन केमिकल खोज में से एक माना गया है स्पेस सुइट और पाइप में इसका प्रयोग उर्जा रोधी के रूप में किया जाने लगा पर ये भी एक बड़ा सच है की ये स्वास्थ के लिए हानिकारक है इसके हानिकारक प्रभाव जन्मजात बिमारियों ,सांस की बीमारी जेसी कई बिमारियों के रूप में देखे जा सकते हैं.

ये भी सच है की जब टेफलोन कोटेड बर्तन को अधिक गर्म किया जाता है तो पक्षियों की जान जाने का खतरा काफी बढ़ जाता है कुछ ही समय पहले 14 पक्षी तब मारे गए जब टेफलोन के बर्तन को पहले से गरम किया गया और तेज आंच पर खाना बनाया गया, ये पूरी घटना होने में सिर्फ 15 मिनिट लगे.

टेफलोन कोटेड बर्तनों में सिर्फ 5 मिनिट में 721 डिग्री टेम्प्रेचर तक गर्म हो जाने की प्रवृति देखी गई है और इसी दोरान 6 तरह की गैस वातावरण में फैलती है इनमे से 2 एसी गैस होती है जो केंसर को जन्म दे सकती है. अध्ययन बताते हैं कि टेफलोन को अधिक गर्म करने से टेफलोन टोक्सिकोसिस (पक्षियों के मामले में ) और पोलिमर फ्यूम फीवर ( इंसानों के मामले में ) की सम्भावना बहुत बढ़ जाती है .



टेफलोन केमिकल के शरीर में जाने से होने वाली बीमारियाँ:



1 . पुरुष इनफर्टिलिटी : हाल ही में किए गए एक डच अध्यन में ये बात सामने आई है लम्बे समय तक टेफलोन केमिकल के शरीर में जाने से पुरुष इनफर्टिलिटी का खतरा बढ़ जाता है और इससे सम्बंधित कई बीमारियाँ पुरुषों में देखी जा सकती है.

२. थायराइड : हाल ही में एक अमेरिकन एजेंसी द्वारा किया गए अध्यन में ये बात सामने आई क2 टेफलोन की मात्र लगातार शरीर में जाने से थायराइड ग्रंथि सम्बन्धी समस्याएं हो सकती है.

3. बच्चे को जन्म देने में समस्या : केलिफोर्निया में हुई एक स्टडी में ये पाया गया की जिन महिलाओं के शरीर में जल ,वायु या भोजन किसी भी माध्यम से पी ऍफ़ ओ (टेफलोन) की मात्रा सामान्य से अधिक पाई गई उन्हें बच्चो को जन्म देते समय अधिक समस्याओं का सामना करना पड़ा इसी के साथ उनमे बच्चो को जन्म देने की शमता भी अपेक्षाकृत कम पाई गई.

4 . केंसर या ब्रेन ट्यूमर का खतरा : एक प्रयोग के दौरान जब चूहों को पी ऍफ़ ओ के इंजेक्शन लगाए गए तो उनमे ब्रेन ट्यूमर विकसित हो गया साथ ही केंसर के लक्षण भी दिखाई देने लगे. पी ऍफ़ ओ जब एक बार शरीर के अन्दर चला जाता है तो लगभग 4 साल तक शरीर में बना रहता है जो एक बड़ा खतरा हो सकता है .

5. शारीरिक समस्याएं व अन्य बीमारियाँ : पी ऍफ़ ओ की अधिक मात्रा शरीर में पाई जाने वाली महिलाओं के बच्चो पर भी इसका असर जन्मजात शारीरिक समस्याओं के रूप में देखा गया है इसीस के साथ अद्द्याँ में ये सामने आया है की पी ऍफ़ ओ की अधिक मात्रा लीवर केंसर का खतरा बढ़ा देती है .

टेफलोन के दुष्प्रभाव से बचने के उपाय:

1. टेफलोन कोटिंग वाले बर्तनों को कभी भी गैस पर बिना कोई सामान डाले अकेले गर्म होने के लिए ना छोड़े.

2. इन बर्तनों को कभी भी ४५० डिग्री से अधिक टेम्प्रेचर पर गर्म ने करे सामान्यतया इन्हें ३५० से ४५० डिग्री तक गर्म करना बेहतर होता है

3. टेफलोन कोटिंग वाले बर्तनों में पक रहा खाना बनाने के लिए कभी भी मेटल की चम्मचो का इस्तेमाल ना करे इनसे कोटिंग हटने का खतरा बढ़ जाता है

4. टेफलोन कोटिंग वाले बर्तनों को कभी भी लोहे के औजार या कूंचे ब्रुश से साफ़ ना करे , हाथ या स्पंज से ही इन्हें साफ़ करे

5. इन बर्तनों को कभी भी एक दुसरे के ऊपर जमाकर ना रखे

6. घर में अगर पालतू पक्षी है तो इन्हें अपने किचन से दूर रखें

7. अगर गलती से घर में एसा कोई बर्तन ज्यादा टेम्प्रेचर पर गर्म हो गया है तो कुछ देर के लिए घर से बाहर चले जाए और सारे खिड़की दरवाजे खोल दे पर ये गलती बार बार ना दोहराएं क्यूंकि बाहर के वातावरण के लिए भी ये गैस हानिकारक है

8. टूटे या जगह ,जगह से घिसे हुए टेफलोन कोटिंग वाले बर्तनों का उपयोग बंद कर दे क्यूंकि ये धीरे धीरे आपके भोजन में ज़हर घोल सकते है ,अगर आपके बर्तन नहीं भी घिसे है तो भी इन्हें २ साल में बदल लेने की सलाह दी जाती है

जहाँ तक हो सके इन बर्तनों कम ही प्रयोग करिए इन छोटी छोटी बातों का ध्यान रखकर आप अपने और अपने परिवार के स्वास्थ को बेहतर बना सकते हैं.

SUSHIL KUMAR DWIVEDI
PGT BIO
K. V DHOLCHERA
ASSAM
INDIA