एक रिपोर्ट के मुताबिक विश्व में नर-वानरों की आधी से ज़्यादा प्रजातियों पर लुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है.
इसमें लेमुर, बंदर और गोरिल्ला समेत करीब 25 नर-वानर या प्राइमेट शामिल हैं.
प्रकृति के संरक्षण के लिए बनी अंतरराष्ट्रीय यूनियन(आईयूसीएन) और अन्य शोध संगठनों ने ये तथ्य सामने रखे हैं.
रिपोर्ट में कहा गया कि प्राइमेट या नर-वानरों की इस हालत के लिए कम होते जंगल, अवैध शिकार और वन्यजीवों की तस्करी शामिल है.
प्रोजेक्ट के प्रमुख क्रिस्टॉफ़ स्विज़र उम्मीद जताते हैं कि इस रिपोर्ट से नर-वानरों की दशा की ओर लोगों का ध्यान जाएगा और सरकारें शायद कुछ क़दम उठाएँ.
पिछले साल केवल एक तिहाई प्रजातियों पर ही लुप्त होने का ख़तरा था लेकिन इस साल ये बढ़कर 50 फ़ीसदी हो गया है.
दक्षिणपूर्व एशिया में हालत ख़राब
आईयूसीएन के रसल मिटरमियर कहते हैं कि वरटिब्रेट यानी रीढ़ वाले जीवों में से सबसे ज़्यादा ख़तरा नर-वानरों पर ही है.
एएफ़पी के मुताबिक ऐसी 25 प्रजातियों में से पाँच मैडागास्कर के द्वीप पर रहती हैं, छह अफ़्रीकी उपमहाद्वीप पर हैं, तीन दक्षिण अमरीका में और 11 दक्षिण पूर्व एशिया में.
कहा जा रहा है कि वियतनाम का सुनहरी सर वाला लंगूर शायद ही बच पाए. ये सिर्फ़ गल्फ़ ऑफ़ टॉनकिन में कैट बा द्वीप पर मिलते हैं. ऐसे केवल 60 या 70 लंगूर ही बचे हैं.
इन प्रजातियों के रहने की प्राकृतिक जगह (हैबिटैट) नष्ट होती जा रही है क्योंकि कृषि के लिए जंगलों का सफ़ाया किया जा रहा है. इसी कारण लुप्त होने का ख़तरा इतना बढ़ गया है.
दक्षिणपूर्व एशिया में खाने और औषधियों के लिए भी जानवरों का शिकार होता है. इनका अवैध व्यापार भी किया जाता है.
जैव विविधता पर संयुक्त राष्ट्र की बैठक अक्तूबर में जापान में होनी है. अध्ययनकर्तओं को उम्मीद है कि लुप्त होने के कगार पर पहुँची 25 प्रजातियों के बारे में लोगों और सरकारों में जागरुकता आएगी.
A blog for BIOLOGY students by : Susheel Dwivedi PGT Biology Kendriya Vidyalaya Secter J Aliganj Lucknow U P
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