Sunday, May 9, 2010

Use of narco analysis ...

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को नार्को टेस्ट सहित ब्रेन मैपिंग और पॉलीग्राफ टेस्ट को असंवैधानिक करार दिया है। आइए जानते हैं कैसे और क्या होते हैं ये टेस्ट, इनकी अन्य देशों में कितनी है मान्यता। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को नार्को टेस्ट सहित ब्रेन मैपिंग और पॉलीग्राफ टेस्ट को असंवैधानिक करार दिया है। आइए जानते हैं कैसे और क्या होते हैं ये टेस्ट, इनकी अन्य देशों में कितनी है मान्यता।

सुप्रीम कोर्ट ने नार्को टेस्ट समेत ब्रेन मैंपिंग और पॉलीग्राफ टेस्ट किए जाने को असंवैधानिक करार देते हुए बुधवार को कहा कि यह अभियुक्त के मानवाधिकारों का उल्लंघन है । सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिना अभियुक्त की सहमति के ऐसे टेस्ट नहीं किए जा सकते हैं। पुलिस और जांच एजेंसियों से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे में जांच में अवरोध आ सकता है और आरोपियों को बचने का मौका मिल जाएगा वहीं कुछ अन्य लोगों का मानना है कि किसी भी व्यक्ति की निजता के लिए ऐसे टेस्ट पर रोक जरूरी है।

विदेशों में कितनी है मान्यता

यूरोप में अधिकांश न्यायिक मामलों में पॉलीग्राफिक टेस्ट को विश्वसनीय नहीं माना जाता है और इसे पुलिस द्वारा सामान्य तौर पर प्रयोग नहीं किया जाता है। हालांकि, किसी मुकदमे में पीड़ित पक्ष मनोवैज्ञानिक से पॉलीग्राफिक टेस्ट के आधार पर अपनी राय देने के लिए कह सकता है और मनोवैज्ञानिक की राय को न्यायाधीश अन्य राय की तरह ही महत्व देते हैं। मगर, इसका खर्चा पीड़ित पक्ष को ही वहन करना होगा।

कनाडा में आपराधिक घटनाओं व सरकारी संस्थाओं में कर्मचारी की स्क्रीनिंग के लिए पॉलीग्राफिक टेस्ट को एक फॉरेंसिक टूल की तरह प्रयोग किया जाता है। १९८७ में कनाडा की सुप्रीम कोर्ट ने पॉलीग्राफिक टेस्ट के नतीजों को अदालत में सबूत के तौर पर मानने से खारिज कर दिया। हालांकि, अदालत के इस निर्णय के बावजूद भी वहां आपराधिक घटनाओं में पॉलीग्राफिक टेस्ट करने में कोई फर्क नहीं पड़ा है।

आस्ट्रेलिया की हाईकोर्ट ने अब तक पॉलीग्राफिक टेस्ट के नतीजों को सबूत के तौर पर स्वीकार करने पर विचार नहीं किया है। हालांकि, न्यू साउथ वेल्स डिस्ट्रिक्ट के कोर्ट ने आपराधिक मामले में इस मशीन के प्रयोग से इंकार कर दिया था।

इजराइल की अदालत पॉलीग्राफिक टेस्ट के नतीजों को विश्वसनीय नहीं मानती है। हालांकि, यहां की कुछ बीमा एजेंसियां पॉलीग्राफिक टेस्ट को महत्व देती हैं और वे लाभकारी से इस बाबत कागज पर हस्ताक्षर करवा लेते हैं कि उनके पॉलीग्राफिक टेस्ट को सबूत माना जाए।

नार्को

नार्को टेस्ट में एक विशेष प्रकार के रासायनिक यौगिक (जैसा चित्र में है) को प्रयोग किया जाता है। इसे ट्रुथ ड्रगके नाम से भी जाना जाता है। ट्रुथ ड्रग एक साइकोएक्टिव दवा है, जो ऐसे लोगों को दी जाती है जो सच नहीं बताना चाहते हैं। दवा के प्रयोग से व्यक्ति कृत्रिम अनिद्रा की अवस्था में पहुंच जाता है। इस दौरान उसके दिमाग त्वरित प्रतिक्रिया देने वाला हिस्सा काम करना बंद कर देता है। ऐसे में व्यक्ति बातें बनाना और झूठ बोलना भूल जाता है। अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत ट्रुथ ड्रग के अनैतिक प्रयोग को यातना के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

हालांकि, मनोरोगियों का उपचार करने में इसका उपयोग होता है। इसका पहली बार प्रयोग डॉ. विलियम ब्लीकवेन ने १९३क् में किया था और इसका आज तक प्रयोग हो रहा है। किसी व्यक्ति को कृत्रिम रूप से निद्रावस्था में ले जाकर उनसे पूछताछ करने की प्रक्रिया को नार्को एनालिसिस कहते हैं। भारत में कथित रूप से सीबीआई जांच के दौरान इंट्रावीनस बारबिटुरेट्स (एक दवा जिसे इंजेक्शन के जरिए नार्को टेस्ट के दौरान दी जाती है) का प्रयोग करती है। भारत में इसे पुलिस वर्षो से प्रयोग कर रही है, जो कि खुद को दोषी ठहराने के खिलाफ दिए गए अधिकारों का उल्लंघन है।

पॉलीग्राफ

पॉलीग्राफ मशीन एक ऐसा उपकरण है जो रक्तचाप, नब्ज, सांसों की गति, त्वचा की स्निग्धता आदि को उस वक्त नापता और रिकॉर्ड करता है, जब किसी व्यक्ति से लगातार प्रश्न पूछे जाते हैं। व्यक्ति से पहले उन प्रश्नों को पूछा जाता है, जिसमें आमतौर पर वह झूठ नहीं बोल सकता हो। जैसे व्यक्ति का नाम, उसके घर का पता, वह कितने साल से नौकरी या व्यवसाय कर रहा है आदि। इस दौरान पॉलीग्राफिक मशीन की मदद से उसका बीपी, धड़कन, सांसों की गति, त्वचा की स्निग्धता आदि रिकॉर्ड कर ली जाती है। इसके बाद उससे वे सवाल पूछे जाते हैं, जिनके जवाब जांच अधिकारी जानना चाहते हैं।

दरअसल, सही जवाब और गलत जवाब के दौरान शरीर की प्रतिक्रिया में उतार-चढ़ाव होने लगता है। इसके आधार पर सच और झूठ का फैसला किया जाता है। वैज्ञानिकों के बीच इसकी विश्वसनीयता कम है। हालांकि, 90-95 फीसदी वकीलों और 95-100 फीसदी पॉलीग्राफिक सेवाएं उपलब्ध कराने वाले व्यवसायी इसे विश्वसनीय बताते हैं। इस टेस्ट के आधार पर ‘सच का सामना’ सीरियल टेलीकास्ट हुआ था। कई लोगाें ने घर में सच का सामना खेला और कुछ कड़वी सच्चाई सामने आने पर आत्महत्या तक कर ली।

ब्रेन मैपिंग

ब्रेन मैपिंग तंत्रिकाविज्ञान की मदद से तैयार की गई तकनीक है। इसमें मस्तिष्क की अलग-अलग तस्वीरों के आधार पर सच और झूठ का फैसला किया जाता है। सभी प्रकार की न्यूरो इमेजिंग ब्रेन मैपिंग का हिस्सा हैं। ब्रेन मैपिंग में डाटा प्रोसेसिंग या एनालिसिस जैसे मस्तिष्क के विभिन्न हिस्सों के व्यवहार का खाका खींचा जाता है। यह तकनीकी लगातार विकसित हो रही है और इस पर विश्वास भी किया जाता है।

अमेरिका में 1980 के अंत में द इंस्टीट्यूट ऑफ मेडीसिन ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस को अधिकृत किया गया कि वह कई तकनीकों का प्रयोग करते हुए न्यूरोसाइंटिफिक सूचनाएं जुटाने के लिए एक पैनल को गठित करे। इसके तहत फंक्शनल मैग्नेटिक रेसोनेंस इमेजिंग (एफएमआरआई), इलेक्ट्रोइंसेफिलोग्राफी (ईसीजी), पोस्रिटॉन इमीशन टोमोग्राफी (पीईटी) के साथ ही अन्य स्कैनिंग तकनीकों का प्रयोग को विकसित किया गया। इससे स्वस्थ और बीमार दोनों के मस्तिष्क की याददाश्त, सीखने की क्षमता, उम्र और ड्रग के प्रभावों को जाना जा सकता है। यह सभी तकनीकों से दिमाग की अलग-अलग स्थिति में हुए बदलावों की तस्वीरें पेश की जाती हैं। इन्हीं का आकलन करने के बाद किसी नतीजे पर पहुंचा जाता है।

पुख्ता सबूत नहीं

भारत में नार्को टेस्ट की विश्वसनीयता पर पहले भी सवाल उठते रहे हैं। वर्तमान में भले ही सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे टेस्ट पर रोक लगा दी हो, लेकिन पहले भी इसे सबूत के तौर पर कोर्ट नहीं मानती थी। नार्को टेस्ट से लिया गया बयान पुख्ता सबूत के तौर पर पेश नहीं किया जा सकता था, लेकिन अदालत में उसे मुख्य सबूत के साथ जोड़कर देखा जा सकता था। संयुक्त राष्ट्र में भी इस प्रकार के टेस्ट पर प्रतिबंध है।

छुप जाएगा जुर्म

च्च्मैं सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का सम्मान करता हूं, लेकिन पूछताछ एजेंसियों के लिए सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय एक बड़ा झटका है और इससे जांच में एक बड़ी कमी रह जाएगी। साथ ही इस पर रोक से आरोपी अपना जुर्म छुपा सकेंगे।
By
Susheel Dwivedi
School of Biotechnology
Banaras Hindu University
Varanasi

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