Saturday, April 10, 2010

रेडियोएक्टिविटी की टेंशन

विकिरण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें किसी तत्व से किरणों के रूप में लगातार ऊर्जा निकलती रहती है। यह प्रक्रिया तब तक होती रहती है, जब तक तत्व स्थायित्व प्राप्त नहीं कर लेता है। रेडियोएक्टिव तत्वों से एल्फा, बीटा, गामा किरणों के रूप में ऊर्जा का उत्सर्जन होता है। रेडियोएक्टिव पदार्थ से एक अवधि के बाद किरणों का उत्सर्जन बंद हो जाता है। इसका कारण उनके स्वरूप में बदलाव होना है। इस अवधि की गणना अर्धआयु काल से की जाती है। यह पदार्थ के अन्य पदार्थ में बदलने का आधा समय है।

किसी भी धातु का सबसे छोटा कण या परमाणु इलेक्टॉन, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन से मिलकर बना होता है। इन तीनों कणों की परमाणु में निर्धारित संख्या और संरचना होती है। प्रोटॉन (पॉजिटिव चार्ज) और न्यूट्रॉन केंद्र में होते हैं, जबकि इलेक्ट्रॉन (निगेटिव चार्ज) बाहरी कक्षा में चक्कर लगाते रहते हैं। किसी भी परमाणु को स्वतंत्र रहने के लिए तीनों कणों का एक समान अनुपात चाहिए होता है। जब परमाणु के केंद्र में प्रोटॉन और न्यूट्रॉन अधिक होते हैं तो यहीं से कुछ किरणों के रूप में ऊर्जा का उत्सर्जन होने लगाता है। यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है, जब तक तीनों कणों की संख्या एक निर्धारित अनुपात में न आ जाए।
भयावह होते हैं हादसे

पिछले वर्ष नवंबर में कैगा परमाणु संयंत्र में रेडियोएक्टिव पदार्थ ट्राइटियम प्रयोगशाला में लगे वॉटर कूलर में मिला था। इससे वहां कार्यरत ५क् लोग बीमार पड़ गए थे। वहीं वर्ष 2007 में न्यूक्लियर पॉवर प्लांट्स में 63 बड़ी परमाणु दुर्घटनाएं हुईं। सबसे भयावह दुर्घटना 1986 की चेरनोबल आपदा थी, जो यूक्रेन में हुई थी। इस हादसे में 50 लोगों की मौत हो गई थी और 4,000 से अधिक लोगों को घातक कैंसर होने के मामले सामने आए थे। इसके साथ ही सात अरब डॉलर की संपत्ति का नुकसान हुआ था। बेलारूस, यूक्रेन और रूस के पास दुर्घटना के बाद रेडियोएक्टिव तत्व निकल गया था। इसकी वजह से 3 लाख 50 हजार लोगों को इस क्षेत्र से दूर बसाया गया था।
रेडियोएक्टिव प्रकृति
एक्टिनाइट श्रेणी के सभी सदस्य रेडियोएक्टिव प्रकृति के होते हैं। इनमें से अधिकांश प्रकृति में नहीं पाए जाते हैं। परमाणु क्रमांक 93 और उसके बाद के तत्व सामान्यत: ट्रांसयूरेनियम तत्व कहलाते हैं। इन तत्वों को कृत्रिम रूप से बनाया जाता है।
फायदा भी, नुकसान भी
- कोबाल्ट-60, कोबाल्ट का कृत्रिम तौर पर बनाया गया रेडियोएक्टिव आइसोटोप है। इसे रेडियोएक्टिव पदार्थो की खोज और कैंसर के ट्रीटमेंट में खासतौर पर इस्तेमाल किया जाता है। यह रेडियोथैरेपी में उपयोग में लाया जाता है। यह दो गामा किरणों पैदा करता है।


- रेडियोथैरेपी मशीन से निकलने वाले कोबाल्ट-60 का यदि उचित ढंग से निपटारा न किया जाए तो यह मानव, जानवर और पर्यावरण के लिए घातक हो सकता है। इससे उत्तरी अमेरिका में 1984 में कई दुर्घटनाएं हुई थीं।

सही ढंग से नष्ट करना जरूरी


- इंसान के लिए कोबाल्ट-60 का खुला विकिरण खतरनाक होता है। यदि यह शरीर में यह चला जाए तो इसका बड़ा हिस्सा मल के साथ बाहर आ जाता है। हालांकि, लीवर, किडनी और हड्डियों द्वारा इसकी छोटी सी भी मात्रा सोख लेने पर कैंसर होने का खतरा होता है।
- कोबाल्ट-60 से बनी रेडियोथैरेपी मशीनों उस समय खतरनाक साबित हो जाती हैं जब उपयोग के बाद उन्हें सही ढंग से नष्ट न किया जाए। अब इन मशीनों को आधुनिक लीनियर एक्सेलेटर से बदला जा रहा है।
क्या होते हैं आइसोटोप?
दो या दो से अधिक परमाणु जिनकी परमाणु संख्या समान होती है, लेकिन उनके न्यूट्रॉन्स की संख्या अलग होती है, आइसोटोप्स कहलाते हैं। जैसे कार्बन के तीन आइसोटोप्स कार्बन-12, कार्बन-13, कार्बन-14 प्रकृति में पाए जाते हैं। इनके मास नंबर क्रमश: 12,13,14 होते हैं। कार्बन की परमाणु संख्या 6 है। इसलिए इन आइसोटोप्स में न्यूट्रॉनों की संख्या क्रमश: 12-6=6, 13-6=7, 14-6=8 होगी। इसी तरह से हीलियम के एचई-3, एचई-4 और यूरेनियम के यू-235 और यू-239 आइसोटोप होते हैं।
मैरी क्यूरी ने की थी खोज
दिसंबर 1899 में मैरी क्यूरी और उनके पति पेरी क्यूरी ने पिचब्लैंड नाम के खनिज से रेडियम की खोज की थी। मैरी के अनुसार, यह नया तत्व यूरेनियम से 20 लाख गुना अधिक रेडियोएक्टिव था। उन्होंने पाया कि सिर्फ कुछ ही तत्व ऊर्जा वाली किरणों को उत्सर्जित करते हैं। उन्होंने तत्वों से ऊर्जा उत्सर्जन के इस व्यवहार को रेडियोएक्टिविटी का नाम दिया। मैरी क्यूरी भौतिकी और रसायन विज्ञान में दो नॉबल पुरुस्कार जीतने वाली पहली महिला थीं।
क्या है कोबाल्ट-60?
कोबाल्ट-60 को प्रतीकात्मक रूप में 60ओ लिखा जाता है। इसमें 33 न्यूट्रॉन और प्रोटॉन 27 होते हैं। यह कोबाल्ट का रेडियोएक्टिव आइसोटोप होता है। इसकी अर्धआयु 5.2714 वर्ष होती है। इस वजह से यह प्रकृति में नहीं पाया जाता है। 59सीओ के न्यूट्रॉन को सक्रिय कर इसे कृत्रिम रूप से बनाया जाता है। 60 सीओ नकारात्मक बीटा का क्षय कर स्थायी आइसोटोप निकिल-60 (60एनआई) में बदल जाता है। सक्रिय निकिल परमाणु 1.17 और 1.33 एमईवी की दो गामा किरणों उत्सर्जित करता है।
इनको है ज्यादा खतरा
रेडिएशन का सबसे ज्यादा खतरा एक्स-रे, सीटी स्कैन मशीनों, न्यूक्लियर पॉवर प्लांट आदि में काम करने वाले लोगों और इनके पास रहने वाले लोगों को होता है। नियमानुसार एक्स-रे, सीटी स्कैन आदि उपकरणों को जिनमें रेडियोएक्टिव तत्वों का प्रयोग किया जाता है, उन्हें आवासीय इलाकों में नहीं लगाया जाना चाहिए।
रेडिएशन की जांच जरूरी
रेडिएशन की जांच के लिए रेडिएशन मॉनीटर प्रयोग किया जाता है। जब भी किसी व्यक्ति को उपचार के लिए रेडिएशन से गुजारा जाता है या फिर वह किसी ऐसे संस्थान में काम करता है, जहां रेडिएशन होता है तो उसे यह उपकरण रखना होता है। इस मीटर के आंकड़ों की स्टडी परमाणु ऊर्जा नियामक एजेंसी करती है। यदि विकिरण अधिक हो रहा होता है तो उसे कम किया जाता है।

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